''मैं बीए-एलएलबी ऑनर्स करूंगी. मैं क़ानून की पढ़ाई करना चाहती हूं ताकि ख़ुद के अधिकार जान सकूं और लोगों के अधिकार उन्हें बता सकूं. मुझे मानवाधिकार का र्यकर्ता बनना है ताकि जब अपने देश वापस जाऊं तो अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ सकूं.'' 22 साल की तस्मीदा ये बात कहती हैं तो उनकी आंखें उम्मीद से भर जाती हैं. तस्मीदा भारत में रह रहे 40 हज़ार रोहिंग्या शरणार्थियों में पहली लड़की हैं जो कॉलेज जाएंगी. उन्होंने जामिया मिल्लिया इस्लामिया में विदेशी छात्र कोटे के तहत फॉर्म भरा है. दिल्ली में बहने वाली यमुना नदी के किनारे बसे रोहिंग्या बस्ती में तस्मीदा टाट औ र प्लास्टिक से बने घर में माता, पिता और एक भाई के साथ रहती हैं. अपने छह भाइयों की अकेली बहन तस्मीदा भारत में रोहिंग्या बच्चियों के लिए एक प्रेरणा बन गई हैं. अपनी बात में वो बार-बार म्यांमार हमारा देश कहती हैं, वही म्यांमार जो इन रोहिंग्या मुसल मानों को अपना नागरिक नहीं मानता. कॉलेज तक पहुंचने की लड़ाई तस्मीदा के लिए आसान नहीं रही. वो छह साल की उम्र में म्यांमार छोड़कर बांग्लादेश आ गईं लेकिन जब हालात बिगड़े तो भारी ...