हर जगह की हवा में पानी होता है. फिर
वो तपते रेगिस्तान में बहने वाली हवा हो, या फिर लगातार बारिश वाले इलाक़े
की. एक अंदाज़े के मुताबिक़ दुनिया भर में 3100 क्यूबिक मील या 12 हज़ार
900 क्यूबिक किलोमीटर पानी, हवा में नमी के रूप में पैबस्त है.
पानी
की ये तादाद कितनी है, इसका अंदाज़ा इस बात से लगा सकते हैं कि उत्तरी
अमरीका की सबसे बड़ी झील लेक सुपीरियर में भी इतना पानी नहीं है. लेक सुपीरियर में 11 हज़ार 600 क्यूबिक किलोमीटर ही पानी है. वहीं अफ्रीका की विशाल झील विक्टोरिया में महज़ 2700 क्यूबिक किलोमीटर पानी है.
ब्रिटेन की डरावनी झील लॉक नेस में जितना पानी है, उससे 418 गुना ज़्यादा पानी हवा में क़ैद है.
याद रखिए हम बादलों की बात नहीं कर रहे हैं. हम हवा में क़ैद उस पानी की बात कर रहे हैं, जो नमी के रूप में होता है. इस पानी को आप उस वक़्त देखते हैं, जब कोल्ड ड्रिंक से भरे गिलास के ऊपर कुछ बूंदें जमा हो जाती हैं. हवा में पैबस्त ये पानी आपको घास पर
पानी की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए अब हवा में मौजूद इस मीठे पानी पीने को निकालने की जुगत भिड़ाई जा रही है.
हवा से पानी निचोड़ने की इस रेस में जो मशीन सब से आगे है, उसका नाम है 'वाटर फ्रॉम एयर. अगर ये मशीन कारगर रही, तो दुनिया में पीने के पानी की समस्या का एक बढ़िया तोड़ निकल आएगा.
ओस की बूंदों के तौर पर भी दिखाई देता है.
कहा जा रहा है कि 2025 तक दुनिया की तेज़ी से बढ़ती आबादी का दो तिहाई हिस्सा, पानी की किल्लत से दो-चार होगा.
आज की तारीख़ में दुनिया में 2.1 अरब लोग साफ़ पीने के पानी से महरूम हैं. दुनिया के सबसे ग़रीब लोगों को पीने के पानी की सबसे ज़्यादा क़ीमत चुकानी पड़ रही है.
वो ये जानते हुए पीने का पानी इस्तेमाल करते हैं कि ये उनके लिए ख़तरनाक हो सकता है. प्रदूषित पानी पीने की वजह से हर साल दुनिया भर में
ग़रीब देशों के मुक़ाबले ज़्यादा पानी इस्तेमाल करने वाले अमीर मुल्कों में उद्योगों और खेती में पानी का बेतहाशा इस्तेमाल होता है. नतीजा ये कि इन देशों में नदियों का पानी और भूगर्भ जल के स्रोत सूखते जा रहे हैं.
पीने के पानी को लेकर भरोसे का मसला भी है. प्रशासनिक अधिकारी जिस पानी के साफ-सुथरे होने का दावा करते हैं, वो अक्सर सफ़ाई के पैमानों पर खरा नहीं उतरता. अमरीका के फ्लिंट नाम के शहर में जिस पानी को साफ़ बता कर सप्लाई किया जा रहा था, उसमें रेडियोएक्टिव तत्व, आर्सेनिक और सीसा पाए गए.
यही वजह है कि मध्यम वर्ग पीने के लिए बोतलबंद पानी का इस्तेमाल बढ़ाता जा रहा है. दुनिया भर में पीने के बोतलबंद पानी का कारोबार 10 फ़ीसद सालाना की दर से बढ़ रहा है.
2017 में 391 अरब लीटर बोतलबंद पानी दुनिया भर में बेचा गया था. ये डेढ़ लाख ओलंपिक स्विमिंग पूलों में भरे पानी की मात्रा से भी ज़्यादा था.
क़रीब 5 लाख लोग डायरिया से मर जाते हैं.
ज़ाहिर है कि आज इंसान को पीने के पानी का ऐसा स्रोत चाहिए, जो बीमार न करे, गरीबों की पहुंच में हो और रईस भी उसे इस्तेमाल करना चाहें.
वैसे हवा से पानी खींचना कोई नया ख़्याल नहीं है. हवा से नमी सोखने की मशीनें बहुत पहले से इस्तेमाल होती आई हैं. लेकिन, ये मशीनें, हवा से जो पानी खींचती हैं, वो न तो साफ़ होता है, न ही उसमें वो मिनरल होते हैं, जिनकी हमें ज़रूरत है.
लेकिन अब नमी सोखने वाली इन मशीनों की तकनीक से कई कंपनियां ऐसे यंत्र बनाने में जुटी हैं, जो हवा की नमी को सोख कर हमें पानी की सप्लाई दे सके. हवा से नमी सोखने वाली मशीनों को डिह्यूमिडीफ़ायर कहते हैं. ये हमारे घरेलू फ्रिज की तरह काम करती हैं.
वाटर फिल्टर फ्रॉम एयर मशीन भी ऐसे ही काम करती है. लेकिन, इससे जो पानी जमा होता है, उसे फिल्टर किया जाता है, अल्ट्रावायोलेट किरणों से ट्रीट किया जाता है. फिर उसमे ज़रूरी मिनरल मिलाकर पीने के लायक़ बनाया जाता है.
कनाडा के जल सलाहकार रोलां वाल्ग्रेन दुनिया भर में इस्तेमाल हो रही डब्ल्यूएफए तकनीक पर नज़र रखते हैं और इसे अपनी वेबसाइ में डालते हैं. उनके डेटाबेस में फिलहाल 71 कंपनियां दर्ज हैं. नमें से 64 मेकेनिकल रेफ्रिजरेशन तकनीक का इस्तेमाल कर के हवा से पानी निकाल रही हैं. रोलां वाल्ग्रीन कहते हैं कि एक लीटर पानी ऐसे निकालने में 0.4 किलोवाट बिजली ख़र्च होती है. अमरीका में इतनी बिजली की क़ीमत 5.2 सेंट है.
दक्षिणी अफ्रीकी कंपनी वाटर फ्रॉम एयर घरों में इस्तेमाल के लिए वाटर कूलर बनाती है. इसकी मशीन से रोज़ाना 32 लीटर पानी जमा किया जा सकता है. इस कंपनी के वाटर कूलर को चलाने के लिए बार-बार पानी की बोतल नहीं लगानी पड़ती. कंपनी का वाटर कूलर अपनी ज़रूरत का पानी हवा से सोख लेता है.
इसी तरह एक भारतीय कंपनी वाटरमेकर छोटे से लेकर ट्रकों के आकार के वाटर कूलर बेचती है, जो एक गांव की ज़रूरतें पूरी कर सकती है.
हवा से पानी सोखने वाली ये मशीनें तभी काम करती हैं, जब हवा में भरपूर नमी हो. ऐसी ज़्यादातर मशीनें 60 फ़ीसद नमी वाले माहौल में अच्छा काम करती हैं. तो, अगर आप समुद्र के किनारे के किसी शहर में रहते हैं, तो वहां नमी 90 फ़ीसद तक होती है.
एक ब्रिटिश कंपनी रिक्वेंच ने इसका भी तोड़ निकाल लिया है. इसने एक कंटेनर के आकार की मशीन बनाई है, जो केवल पंद्रह फ़ीसद नमी में भी काम करती है.
अगर हवा में नमी ज़्यादा होती है, तो ये मशीन रोज़ाना 2 हज़ार लीटर तक पानी निकाल सकती है. वहीं कम नमी की सूरत में भी ये मशीन कम से कम 500 लीटर पानी तो जमा कर ही लेती है, हवा से.
अब हवा से पानी सोखने के लिए एक और तकनीक इस्तेमाल हो रही है. ये स्पंज की तरह काम करती है, जिसे हवा से नमी सोखने के लिए बिजली भी नहीं चाहिए.
रोलां वाल्ग्रीन कहते हैं कि इस मशीन को बनाने में बहुत ऊंचे दर्जे की तकनीक और सामान नहीं चाहिए. यानी इससे जो पानी निकलेगा वो सस्ता भी पड़ेगा.
ऐसी मशीनें बनाने वाली कंपनी अमरीका के प्रोफेसर कोडी फ्रीसेन ने बनाई है.
प्रोफेसर कोडी अमरीका की एरिज़ोना स्टेट यूनिवर्सिटी में मैटीरियल साइंस के एसोसिएट प्रोफ़ेसर हैं. उन्होंने ज़ीरो मास वाटर नाम से कंपनी बनाई है. वो सोलर पैनल की तरह ही हाइड्रोपैनल की मदद से हवा से पानी इकट्ठा करते हैं.
कोडी फ्रीसेन बताते हैं कि उनकी मशीन एरिज़ोना यूनिवर्सिटी में रिसर्च के दौरान बनी थी. बचपन रेगिस्तान में बिताने की वजह से प्रोफ़ेसर कोडी को पानी बचाने की अहमियत का शुरू से ही अंदाज़ा था.
वो कहते हैं कि आज हमें ऐसी मशीन चाहिए जो 15 फ़ीसद ह्यूमिडिटी में भी पानी को हवा से सोख सके.
फिलहाल कोडी ने ये रहस्य उजागर नहीं किया है कि उनकी मशीन कैसे काम करती है. लेकिन वो कहते हैं कि इसमे लिथियम क्लोराइड और ऑर्गेनिक आयन इस्तेमाल किए गए हैं.
सोलर पैनल की तरह इसमें भी बैटरियां लगी होती हैं, जो सूरज की रोशनी से मशीन को चलाती हैं. इसमें एक केमिकल स्पंज लगा होता है, जो हवा में मौजूद नमी को सोखता है.
कोडी की मशीन की लागत क़रीब 4 हज़ार डॉलर है. ये रोज़ाना 3.5 लीटर पानी इकट्ठा कर सकती है. ये आम फ्रिज के मुक़ाबले बहुत कम, क़रीब 100 वाटर बिजली खाती है.
इसके मुक़ाबले डब्ल्यूएफए मशीन 500 वाट बिजली की खपत करती है. प्रोफेसर कोडी की कोशिश ये है कि हर साल बोतलबंद पानी ख़रीदने वाले जितना पैसा पानी ख़रीदने में ख़र्च करते हैं, उससे कम में ये मशीन उनके काम आने लगे.
क्योंकि बोतलबंद पानी से प्लास्टिक का प्रदूषण और दूसरे क़िस्म के प्रदूषण फैलते हैं.
अगर प्रोफ़ेसर कोडी की मशीन सोर्स को पांच साल इस्तेमाल किया जा सके, तो एक लीटर पानी केवल 16 सेंट का पड़ेगा. इससे आधा लीटर की 3 लाख पानी की बोतलों की ज़रूरत कम होगी. अभी सोर्स के ख़रीदार अमरीका और ऑस्ट्रेलिया के ग्रामीण इलाक़ों में ज़्यादा हैं.
मशीन को मेक्सिको के स्कूलों, लेबनान के अनाथालय और पुएर्तो रिको के फायर स्टेशन को भी बेचा गया है.
लेकिन, हवा से पानी निकालने वाली एक और मशीन इथियोपिया, टोगो और हैती में प्रयोग की जा रही है. ये है 10 मीटर ऊंचा वार्का टावर.
बांस की मदद से खड़ी की गई ये मीनार पॉलियस्टर का जाल लगती है. इसमें सुबह की ओस क़ैद हो जाती है और रिस कर नीचे रखे टैंक में जमा होती है.
वार्का टावर को इटली के आर्किटेक्ट आर्तुरो विटोरी ने डिज़ाइन किया है. उन्हें इसका आइडिया नासा के लिए चांद पर ठिकाना डिज़ाइन करते वक़्त आया.
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