भारत के विदेश मंत्रालय के अनुसार रूस और भारत के बीच दो-तरफा निवेश का '30 अरब डॉलर' का टारगेट पूरा हो चुका है.
अब दोनों देशों ने एक नया टारगेट तय किया है. भारत और रूस मिलकर दो-तरफा निवेश को 50 अरब डॉलर के पार ले जाना चाहते हैं.बीते 11 महीनों में तीन बार रूस का दौरा कर चुकीं भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने सितंबर, 2018 में कहा था कि भारत दो-तरफा निवेश के इस नये टारगेट को साल 2025 तक पूरा करना चाहता है.
साल 1990 में सोवियत संघ के विघटन की प्रक्रिया शुरू होने के बाद रूस को कुछ तटस्थ 'मित्र देशों' की ज़रूरत थी. उस दौर में भारत और रूस की नज़दीकी बढ़ी.
दोनों देशों के बीच एक दूसरे को राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्रों में सहयोग देने पर सहमति बनी. रूस ने वचन दिया था कि वो भारत को रक्षा उपकरणों और उनके कलपुर्जों की सप्लाई जारी रखेगा.
इसी संदर्भ में भारतीय विदेश मंत्री ने रूस के राष्ट्रपति पुतिन के भारत दौरे से पहले कहा, "भारत के लिए रूस सबसे महत्वपूर्ण देश है. हम द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत करना चाहते हैं. डिफ़ेंस के क्षेत्र में रूस ने भारत का बहुत सहयोग किया है. लेकिन अब हमने कुछ नए सेक्टर तलाशे हैं जिनमें दो-तरफा निवेश किया जा सकता है."
सुषमा स्वराज ने बताया, "परमाणु ऊर्जा, बैंकिंग, ट्रेड, फ़ार्मा, कृषि, शिक्षा, परिवहन, पर्यटन, साइंस और स्पेस संबंधी कार्यक्रमों में भारत और रूस मिलकर काम करेंगे."
यूं तो 1960 के दशक से ही रूस भारत का सबसे बड़ा रक्षा आपूर्तिकर्ता रहा है. स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट के अनुसार साल 2012 से 2016 के बीच भारत के कुल रक्षा आयात का 68 फ़ीसदी रूस के साथ हुआ था.
लेकिन डिफ़ेंस क्षेत्र के अलावा भी भारत और रूस के बीच कई चीज़ों का व्यापार होता है और दो-तरफा निवेश किया जाता है.
पिछले कुछ वर्षों में भारत और रूस के बीच हीरे-जवाहरात के व्यापार में बढ़ोतरी दिखी है.
लेकिन यूरोप के दूसरे देशों जैसे बेल्जियम वगैरह की तुलना में ये बहुत कम है.
भारत में हीरे के कई निर्माताओं ने रूस में हीरा काटने और पॉलिश करने की इकाइयाँ स्थापित करने की इच्छा ज़ाहिर की है.
ये निर्माता चाहते हैं कि रूस में उन्हें फ़ैक्ट्रियाँ लगाने दी जाएं ताकि अलरोसा की खदानों से निकलने वाले हीरों तक उनकी पहुंच हो.
रूस में चाय की सालाना खपत क़रीब 17 करोड़ किलोग्राम है.
भारत के वाणिज्य मंत्रालय के अनुसार इसमें से लगभग 30 प्रतिशत की पूर्ति भारत करता है.
भारतीय चाय इंडस्ट्री साल 2020 तक रूस को एक्सपोर्ट बढ़ाकर 6.5 करोड़ किलोग्राम करना चाहती है, जो अभी लगभग 4.8 करोड़ किलोग्राम है.
भारत सरकार ने इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर को तैयार करने में रूस का सहयोग करने की मज़बूत प्रतिबद्धता व्यक्त की है.
ये कॉरिडोर भारत, ईरान, रूस और कई अन्य एशियाई देशों को सड़क मार्ग से जोड़ेगा.
कुडानकुलम में भारत के 1,000 मेगावाट क्षमता के न्यूक्लियर पावर प्लांट को बनाने में रूस ने मदद की है. इसकी दो यूनिट चालू हैं.
भारत सरकार ने साल 2014 के अंत में ये दावा किया था कि रूस की कंपनी रोस्टाटोम अगले 20 सालों में भारत में 12 न्यूक्लियर एनर्जी रिएक्टर तैयार करेगी.
इनमें से 6 रिएक्टर्स के लिए तमिलनाडु के कुडानकुलम में जगह तय की गई थी. जबकि बाकी के 6 रिएक्टर्स के स्थान पर फ़ैसला बाद में होना था.
भारत और रूस, दोनों देशों में फ़ॉर्मास्यूटिकल सेक्टर में सहयोग बढ़ाने के लिए सहमति बन चुकी है.
रूस के फ़ॉर्मा 2020 प्रोग्राम के तहत रूस में कुछ संयुक्त उद्यम परियोजनाओं की स्थापना की जानी है.
वहीं भारत भी चाहता है कि साल 2020 तक देश से दवाओं का निर्यात 20 अरब डॉलर को पार कर जाए.
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