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चर्चा में रहे लोगों से बातचीत पर आधारित साप्ताहिक कार्यक्रम

साल 2017 में, चुनावी हिंसा और कम मतदान प्रतिशत के चलते अनंतनाग लोकसभा सीट पर उपचुनाव रद्द होने के बाद ऐसा लगा कि राज्य प्रशासन ने हाथ खड़े कर दिए थे.
लेकिन इस समय स्थिति काफ़ी नियंत्रण में आ गई है. हालिया लोकसभा चुनावों के दौरान कोई बड़ी हिंसक घटना सामने नहीं आई.
इसके साथ ही हुर्रियत का बदलता हुआ रुख़, विशेषकर बातचीत की दिशा में मीरवाइज़ उमर फारुक़ के सकारात्मक बयान, बताता है कि अलगाववादियों का एक तबका एनआईए के दबाव में झुक रहे हैं.
इसीलिए केंद्र सरकार ने मीरवाइज़ के संकेतों को नज़रअंदाज़ करते हुए जम्मू-कश्मीर के मुख्य दलों को जांच के केंद्र में ला दिया है.
उमर अब्दुल्लाह ने गृहमंत्री अमित शाह की पहली कश्मीर यात्रा पर कहा है, "मुझे उम्मीद है कि (केंद्र सरकार में कश्मीर की) स्थितियों की ज़मीनी हक़ीकत और राज्य को लेकर नीति में बदलाव की ज़रूरत पर बेहतर समझ है."
इसके कुछ दिन बाद संसद में लोकतंत्र गृह मंत्री अमित शाह के भाषण के अहम हिस्सा बना.
उन्होंने अपना बड़ा समय लोकतंत्र और चुनाव पर बात करते हुए खर्च किया, कांग्रेस सरकार की ग़लतियों को गिनाया.
उन्होंने बताया कि चुनावों के साथ धांधली की वजह से कश्मीरियों और नई दिल्ली के बीच अविश्वास पनपा.
शाह ने साफ़ तौर पर बताया कि अब लोकतंत्र का हनन कभी नहीं होगा. उन्होंने राज्य में बिगड़ी परिस्थितियों के लिए भी पीडीपी, नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस को ज़िम्मेदार ठहराया.
इससे भी आगे जाकर केंद्र सरकार सिस्टम को साफ़ करने के लिए भ्रष्टाचारी राजनेताओं के ख़िलाफ़ फाइलें खोलने के लिए तैयार दिख रही है.
अमित शाह ने अपने भाषण में नेशनल कॉन्फ्रेंस की बात करते हुए चुनावों में धांधली करके राज्य में लोकतंत्र का हनन करने के इतिहास पर बात की. उन्होंने ये कहते हुए आम कश्मीरियों के केंद्र सरकार के प्रति पुराने ग़ुस्से का ध्यान खींचा है.
संसद में जम्मू-कश्मीर में चुनावों में धांधली कम ही होती है.
लेकिन अमित शाह के भाषण में इसका ज़िक्र कश्मीरियों में थोड़ा विश्वास पैदा कर सकता है.
लेकिन जम्हूरियत की असली परीक्षा तब होगी जब केंद्र सरकार जल्द से जल्द कश्मीर में विधानसभा चुनाव आयोजित करेगी.
इंसानियत के बारे में बात करते हुए अमित शाह ने समाज कल्याण और विकास की योजनाओं में प्रगति पर बात की.
लेकिन ये इंसानियत शब्द की बहुत ही मामूली परिभाषा है क्योंकि वाजपेयी की रिश्ते सुधारने की कोशिश ने जम्मू-कश्मीर में स्थितियों को बदल दिया था.
इससे पहले मनमोहन सरकार समेत कई सरकारों ने कश्मीर के लिए बड़े आर्थिक और विकास के पैकेज की घोषणा की है.
लेकिन केंद्र सरकार को एक कदम आगे बढ़कर लोगों के दिल और दिमाग़ जीतने की कोशिश करनी चाहिए.
राज्यसभा के अपने भाषण में अमित शाह ने कहा कि कश्मीरियों को डरने की ज़रूरत नहीं है.
लेकिन कश्मीरियों में अभी सबसे बड़ा डर ये है कि बीजेपी सरकार अनुच्छेद 370 जो कि कश्मीर की पहचान का संरक्षण करता है, को निरस्त कर देगी.
बीजेपी के बड़े नेताओं, जिनमें राम माधव शामिल हैं, ने कहा है कि इस अनुच्छेद को अब हटना ही होगा.
ऐसे बयानों ने कश्मीरियों के दिल में डर पैदा कर दिया है.
हालांकि, इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि कश्मीर में सुरक्षा व्यवस्था में भारी इज़ाफा हुआ है.
इसके साथ ही गृहमंत्री का कश्मीरियत, जम्हूरियत और इंसानियत का नारा कश्मीरियों के लिए एक सकारात्मक संदेश है.
लेकिन इसके साथ ही ये कहना भी ज़रूरी है कि एक छोटी सी चिंगारी भी कश्मीर को फिर से जला सकती है.

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